World Suicide Prevention Day: मानसिक स्वास्थ्य पर यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘द स्टेट्स ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रन 2021′ के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने बच्चों और उनके परिवारों के लिए मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। बच्चों में अकेलापन और चिड़चिड़ापन, गुस्सा बढ़ रहा है।
इसकी गंभीरता का आलम यह है कि बहुत छोटी सी बात पर भी बच्चे आत्महत्या का कदम उठाने से गुरेज नहीं करते। केवल राजस्थान कोटा की खबरें ही अब विचलित नहीं करतीं, देश के हर कोने से अब आने लगी है ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाओं की चीख।
ज्वलंत हैं ये सवाल
आजकल ज्यादातर अभिभावकों की यह शिकायत आम है कि उनका बच्चा आक्रामक व्यवहार का आदी हो गया है और वे इसके लिए उन्हें डपटने से भी डरते हैं। बता दें कि यूनिसेफ की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस बदलती दुनिया को देखकर बच्चे समझ नहीं पा रहे कि यहां उनकी किस तरह की अहमियत है।
ऐसे में हम कैसे संभालें (prevent suicide in adolescent) अपने नौनिहालों, बच्चों को कि वे इस अवसाद के अंधेरे से बाहर निकल जीवन के मूल्य को समझें, उसे पहचाने और खुशहाल बनें। आज के समय में ये सवाल ज्वलंत हो उठे हैं। आगामी 10 सितंंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) इस मौके पर जानें क्या हो सकता है इस समस्या का हल।
गंभीरता को समझें
यूनिसेफ की की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 14 से 24 साल के बच्चों में गंभीर उदासी बढ़ती जा रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार, यह गंभीर चिंता का विषय है कि बच्चों में मानसिक सेहत (prevent suicide in adolescent) को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
रिपोर्ट में सबसे चिंताजनक बात जो कही गयी है वह यह है कि ज्यादातर देशों के मुकाबले भारत में बच्चों के मानसिक सेहत को लेकर वैसी गंभीरता नहीं है,जैसी होनी चाहिए।
गलती नहीं समस्या मानें
मानसिक सेहत को अक्सर बच्चों नहीं बड़ों की समस्या मानी जाती रही है। ऐसे में जब कभी बच्चे कुछ गंभीर कदम उठा लेते हैं तो अभिभावक इसे अपनी गलती मान बैठते हैं। चिकित्सकों की मानें तो सबसे पहले तो यह समझना होगा कि बच्चे (prevent suicide in adolescent) यदि असामान्य व्यवहार का प्रदर्शन कर रहे हैं, तो इसमें उनकी यानी अभिभावकों की कोई गलती नहीं है।
यदि बचपन में मानसिक सेहत संबंधी जटिलताएं हैं तो इस बात की अधिक संभावना है कि यह आनुवंशिक हो। इसलिए इलाज की तरफ कदम बढ़ाएं और सजग बनें।
तब जाएं चिकित्सक के पास
चूंकि मानसिक सेहत को गंभीरता से नहीं लिया जाता है इसलिए चिकित्सक के पास जाना जरूरी नहीं समझते। ऐसे में बच्चे में कुछ असहज करने वाला लक्षण दिखे तो मानसिक सेहत के विशेषज्ञ के पास जाएं। जैसे, किसी काम में एकाग्र न होना, रूचि न लेना, पढ़ाई में अरूचि होना, उदास रहना, लोगों से दूरी बनाना आदि। ऐसे लक्षण हें जो यह बताते हैं कि बच्चा भीतरी उथल पुथल से परेशान है।
ठीक होगा भरोसा करें
अच्छी खबर तो यह है कि यदि समय रहते आप बच्चे की (prevent suicide in adolescent) काउंसलिग कराएं तो वह ठीक हो सकता है। यह गांठ बांध लें कि मानसिक सेहत शारीरिक सेहत की तरह ही किसी को भी परेशान कर सकता है। इसलिए हम इसे अपनी या बच्चों की समस्या न मानकर एक बीमारी मानें। नजरअंदाज करने से बीमारी बढ़ती ही है। आंख मूंद लेने से समस्या खत्म नहीं हो जाती।
कैसे हो पहचान?
-बच्चों में चिड़चिड़ापन आएगा, वह हर छोटी बात पर जल्दी गुस्सा करेगा।
-उसकी दिनचर्या बदलती जाएगी। भूख अधिक या कम लगेगा। नींद के पैटर्न में भी बदलाव देख सकते हैं।
-उसे अकेले रहना पसंद आने लगेगा। सबसे कटा कटा सा महसूस करेगा।
-सोशल मीडिया व मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल कर सकता है।
-पढ़ाई और खेलकूद में कम रुचि लेगा। अपना पसंदीदा काम भी नहीं करना चाहेगा।
कुछ जरूरी बातें
- नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो 2018-19 के अनुसार, भारत में प्रत्येक एक घंटे में एक छात्र आत्महत्या करता है, जबकि प्रतिदिन 28 छात्रों की आत्महत्या की सूचना प्राप्त होती है।
- नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो 2021 के अनुसार, भारत में 2016-2021 तक छात्रों के आत्महत्या करने में 27प्रतिशत की बढोतरी हुई है।
- यदि आप बच्चों को या खुद को दोष देते रहेंगे तो इससे कुछ अंतर न पड़ेगा। समस्या तेजी से पांव पसारने लगेगी।
- मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से यदि समय पर ईलाज नहीं कराते तो यह बच्चों के बचपन, उनका करियर, व्यक्तित्व और आनेवाले जीवन पर नकारात्मरक प्रभाव डाल सकता है।
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