Socrates Philosophy of Life: दर्शन का मतलब केवल विचारों की श्रृंखलाओं में उलझना नहीं है। दरअसल, यह जीवन के प्रति नई समझ खोलता है, यह आपको पीड़ाओं या संताप के बीच रहते हुए ऐसी दृष्टि दे सकता है जिनकी मदद से जीवन की राहों पर आप सहजता से चल सकते हैं। यानी बहुत काम का होता है दर्शन। प्राचीन भारतीय ऋषियों की तरह युनानी दार्शनिक सुकरात ने भी आत्म ज्ञान (Socrates Story in Hindi) पर जोर दिया। पूर्व में आत्मज्ञान की जो ललक पहले उपनिषदों और बाद में गौतम बुद्ध ने पैदा की, पश्चिम में यह जिम्मा सुकरात (Socrates या सॉक्रटीज) ने उठाया। सुकरात के जीवन दर्शन पर प्रकाश डाल रहें वरिष्ठ चिंतक व लेखक चैतन्य नागर (@chait_nagar)।
दर्शन की उत्पत्ति
पश्चिम में जीवन के बुनियादी, अस्तित्ववादी सवाल उठाने वाले पहले दार्शनिक थे सुकरात। उन्होंने जिन सवालों के बीज इंसान के जेहन में बोये, आज तक उनके जवाब ढूंढे जा रहे हैं। यह जानना दिलचस्प है कि अंग्रेजी शब्द फिलॉसफी (Philos का अर्थ प्रेम और Sophia का अर्थ सत्य, प्रज्ञा या ज्ञान) का अर्थ ही सत्य के लिए प्रेम। शब्द की उत्पत्ति ग्रीस में ही हुई और सुकरात वहां के दार्शनिकों में बहुत आगे थे।
धुन सत्य को पाने की
सुकरात का जीवन में अच्छाई और सार्थक उद्द्येश्य की खोज पर जोर था। वे सत्य ढूंढने के पीछे दीवानगी की हद तक लगे हुए थे। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वे चौराहे पर खड़े होकर लोगों को रोकते थे और कहते थे कि क्या उन्हें शर्म नहीं आती कि वे भौतिक चीज़ों के पीछे अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं और सत्य (Socrates Story in Hindi) की कोई परवाह नहीं कर रहे!
सबसे ज्ञानी वही
सुकरात ने खुद को सबसे ज्ञानी इन्सान घोषित किया। जब उनसे कहा गया कि वह इस बात को साबित करें तो उन्होंने कहा कि मैं ज्ञानी इसीलिए हूं क्योंकि मैं कुछ नहीं जानता। मैं सिर्फ अपने अज्ञान के सत्य को जानता हूं। बौद्धिक ज्ञान से सत्य पकड़ में नहीं आता इस बात का संकेत सुकरात ने बहुत पहले दे दिया था।
मौत की सजा
तत्कालीन स्थापित देवताओं पर सुकरात ने सवाल उठाये और ज़ाहिर है कि यह बात सत्तासीनों को बहुत खली। सुकरात पर बाकायदा आरोप लगाये गए कि वह युवा पीढी को बरगला (Socrates Story in Hindi) रहे हैं, उनको सही मार्ग से भटका दे रहे हैं। इस कारण सुकरात को कारागार में बंद किया गया और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई।
ऐसा होता है दार्शनिक
मौत की सजा के लिए सुकरात को हैमलॉक नाम का एक खतरनाक ज़हर पीना था। सुकरात के मित्रों ने भी उनको समझाया और उनसे कहा कि कारागार से भाग लें, इसका बंदोबस्त कर दिया गया है। सुकरात ने कहा: “दार्शनिक तो मरने को अपना पेशा ही बना लेता है।
और देह त्याग दिया
सुकरात ने कहा कि दार्शनिक देह की वस्तुओं को आत्मा की वस्तुओं से अलग करता रहता है। पूरे जीवन और मृत्यु के समय क्या होता है? यही न कि देह आत्मा से अलग हो जाती है? तो फिर जिस कार्य में मैं पूरे जीवन लगा हूं, वह जब पूरा होने ही वाला है तो मैं क्यों भागूं?” आखिरकार उन्होंने ज़हर पी लिया और देह त्याग दी।
मृत्यु को जीता जिसने
सुकरात ने खुदकुशी नहीं की। न ही इसका महिमामंडन किया। उन्होंने झूठ के जीवन के सामने मृत्यु को चुना। बस इतना ही। इस घटना से यह भी साबित होता है कि सुकरात मृत्यु के भय को जीत चुके थे। और जिसने इस भय को जीत लिया हो, उसके सामने और कौन सा भय खडा हो सकता है?
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लोकप्रिय तर्क शैली
सुकरात लगातार सवाल करते थे और तर्क करने की उनकी एक ख़ास शैली थी जो अब तक लोकप्रिय है। यह तरीका सवाल पूछने पर ही आधारित होता है। शिक्षक और छात्र के बीच एक संवाद होता है और दोनों एक दूसरे से प्रश्न पूछते हैं। इसी तरह शब्दों और उनके अर्थों के विनिमय से समझ आगे बढ़ती है।
सुकरात के दर्शन के तीन सिद्धांत
- हर मनुष्य को अपने जीवन का उद्देश्य ढूंढना चाहिए। पूरी ऊर्जा के साथ। और तब तक इस कार्य में लगे रहना चाहिए जब तक उसे एक सार्थक उद्द्येश्य न मिल जाए।
- अपने अंतस की परवाह करनी चाहिए। अपनी आत्मा को सहेजना चाहिए।
- अच्छाई की खोज करनी चाहिए क्योंकि जो अच्छा होता है, उसका बाहरी ताकतें नुकसान नहीं कर सकतीं।
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