Main Cause of Stress: दिल नहीं…ये मन मांगे मोर…!

Admin
Admin
Main Cause of Stress
Main Cause of Stress

Main Cause of Stress:  दिल है कि मानता नहीं …ये बेकरारी क्यों हो रही है ये जानता ही नहीं..इस सुपरहिट गाने के बोल पर जरा गौर फरमाएं। भले ही हीरो ये नहीं जानता हो कि दिल या मन भला क्यों नहीं मान रहा लेकिन, अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कारण बता दिया है जिस पर गौर करें तो पाएंगे कि ये दिल नहीं दिमाग है जो हमेशा कुछ ज्यादा पाने की चाहत रखे रहता है और शायद यही वजह है कि दिल या मन क्यों हर पल कुछ न कुछ पाने की चाहत रखता है और बेचैन होता रहता है।

तृप्ति मिश्रा के इस लेख में जानिए इस रोचक शोध के बारे में।

ये है वैज्ञानिकों का दावा

एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इंसान के दिमाग की प्रोग्रामिंग कुछ इस प्रकार की है कि दिमाग को हमेशा ज्यादा पाने की चाहत बनी रहती है और वह कुछ हासिल करने के बाद फिर कुछ चाहने के लिए मचल जाता है। यानी कि दिमाग हमेशा ज्यादा पाने की चाहत में संतुष्ट भी नहीं हो पाता।

ऐसे में आप समझ सकते हैं कि दिल और दिमाग का कनेक्शन भी इसी शोध से जुड़ा है और जब मन कुछ पाने के लिए मचले या जान ही ना पाए कि क्या बेकरारी है तो समझ जाइएगा आपका दिमाग फिर कुछ चाहने का संकेत मन को देकर मन को बेचैन कर रहा है।

एक चीज मिली नहीं कि दूसरी में ढूंढने लगते हैं खुशी

न्यू जर्सी स्थित प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है और यह पाया है कि दिमाग की इस प्रकार की प्रोग्रामिंग के कारण ही हम संतुष्ट नहीं हो पाते। इसी वजह से एक चीज मिली नहीं कि हम दूसरी चीज में अपनी खुशी तलाशने लगते हैं। यही कारण हमारे दुख और असंतुष्टि की वजह भी बन जाता है। हमारी खुशी और हताशा दिमाग के इसी व्यवहार से जुड़े होते हैं।

ऐसे समझा गया दिमाग का व्यवहार

शोधकर्ताओं ने दिमाग के इस व्यवहार को समझने के लिए कंप्यूटर मॉडल्स की मदद ली और इस अध्ययन में पुराने धर्म ग्रंथों से लेकर आधुनिक साहित्य में हमेशा बनी रहने वाली खुशी ढूंढ़ने जैसी कहानियां का भी जिक्र किया और बताया कि मनोवैज्ञानिक घटनाएं बताती हैं कि हमारे दिमाग को हमेशा भौतिक वस्तुओं की चाह बनी रहती है और जो वस्तुएं हमारे पास हैं और जिन वस्तुओं की हमें चाह है, हमारा दिमाग लगातार उसमें तुलना करता है।

काफी हद तक व्यक्ति की खुशी इस बात पर निर्भर करती है। इसके अलावा हम खुश हैं या नहीं यह बात किसी चीज को लेकर हमारी अपेक्षाओं पर भी निर्भर करती है। हालांकि, समय के साथ-साथ इन अपेक्षाओं में परिवर्तन भी आ सकता है।

अपेक्षाओं में संतुलन बनाना जरूरी

वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन को प्रस्तुत करते हुए खुशी और अपेक्षाओं के बीच संबंध को भी उजागर किया। वैज्ञानिकों के अनुसार, खुशी का सीधा संबंध हमारी अपेक्षाओं से जुड़ा होता है। यदि हम अपेक्षाओं को कम रखें तो हमारे खुश रहने की संभावना ज्यादा होती है लेकिन, यहां भी संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। अपेक्षाओं को इतना भी कम ना किया जाए कि ये आपके जीवन स्तर और आपके व्यक्तित्व को ही बदल कर रख दे।

तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Twitter , Kooapp और YouTube पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरें।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *