Spiritual Significance of Dhanteras: धन तेरस पर आइए बड़ा कर लें धन की अवधारणा

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Spiritual Significance of Dhanteras:  क्‍या केवल वही धन है जो हम देख पाते हैं जैसे सोना चांदी, रुपये पैसे, हीरे जवाहरात? बेशक नहीं। हम जानते हैं धन की संकल्‍पना इससे कहीं ज्‍यादा बड़ी व व्‍यापक है। धनतेरस से बेहतर अवसर नहीं हो सकता जब हम भीतर झांकें और यह टटोलने का प्रयास करें कि हम किस धन को जीवन में सर्वाधिक महत्‍व देते हैं।

ऐसा नहीं कि रुपये पैसे की कीमत नहीं पर ज्ञान व सेहत रूपी धन का कोई मोल नहीं। दरअसल, इस धन के आगे सारे धन व्‍यर्थ हैं।

ज्ञान का परम धन

ज्ञान से बड़ा धन नहीं और ज्ञान की अवहेलना से बड़ी गरीबी नहीं। यह कहावत है और उतना ही बड़ा सच है। यदि हमारा नजरिया, हमारा विचार संकुचित है तो जीवन में विकट परिस्‍थति‍यां हमें और भी बीमार व निर्धन बना सकती हैं। यदि हमारे पास ज्ञान की प्रचुरता नहीं है। हम कृतज्ञता का अनुभव नहीं करते तो कितना भी अचल संपत्ति हो हम विपन्‍न हैं।

धन्‍वंतरी का संदेश

धनतेरस पर हम भगवान धन्‍वंतरी की पूजा करते हैं। मान्‍यता है कि समुद्र मंथन में अमृत का कलश लेकर वे प्रकट हुए थे। अमृत कलस यानी अमरता की बूंदों से भरा घड़ा। यह मान्‍यता एक संदेश देता है कि हमें वास्‍तव में स्‍वास्‍थ्‍य को धन समझकर ही जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। इसकी रक्षा तभी होगी जब हम इस बात को लेकर सजग रहेंगे। सेहत की रक्षा के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयत्‍न करेंगे।

बढ़ा लें सेहत का धन

शरीर को धन मानकर आगे बढ़ेंगे तो जीवनशैली में सुधार स्‍वयं होता जाएगा। आज ज्‍यादातर बीमारियों का जड़ हमारी बिगड़ी जीवनशैली है। यह यानी बिगड़ी जीवनशैली हमारी उस सोच से पैदा होती है जिसमें हम धन यानी रुपया पैसा या ऐश्‍वर्य साधनों के संग्रह करने को ही असली अमीरी मानते हैं।

वहीं हम जब यह सोचेंगे कि सेहत रहेगी तो बेहतर जीवन होगा और धन भी कमाना आसान होगा। बीमार रहेंगे तो जीवन अस्‍त व्‍यस्‍त रहेगा और धन भी व्‍यर्थ यानी बीमारी पर खर्च होगा, जो हमारी उस गलत सोच से उपजी है जिसमें हम सेहत को नहीं भौत‍िकता को ही धन समझते हैं।

चेतन अभ्‍यास की आवश्‍यकता

हम अपनी सोच से चलते हैं। यदि हम सोचेंगे कि असली धन ज्ञान है और ज्ञान की प्रचुरता ही हमारी जीवनशैली को बेहतर बना सकती है, स्‍वस्‍थ व समृद्धता के लिए यह जरूरी है तो हम इसी रूप में आगे बढ़ेंगे।

हालांकि ज्‍यादातर लोग ज्ञान रखते तो हैं पर इसका चेतन अभ्‍यास नहीं करते इसलिए अमल नहीं कर पाते। यही वजह है कि धैर्य का अभाव होता है और अधीरता में आवेश का आगमन होता है। आवेश में आकर गलतियां व पापकर्म होते रहते हैं।

लक्ष्‍मी वहीं जहां सुविचार

जहां सुविचार है यानी सुंदर विचारों का धन है, वहां लोग कभी अधीर नहीं हो सकते। वे साहसी व मेहनती होते हैं। हर बाधा का डटकर सामना करते हैं। बता दें कि मां लक्ष्‍मी भी वहीं वास करती हैं।

उनके मन में कभी अभाव नहीं रहता वे सदा प्रचुरता का अनुभव करते हैं। भगवान से मांगते नहीं बल्कि भगवान स्‍वयं उन्‍हें भरपूर रखते हैं। दरअसल, भरपूरता संतोष से आता है और संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है।

दीया जलाओ ज्ञान का

ज्ञान का दीया जलने भर की देर है, यह आपके भीतर उजियारा भरता है। इस उजास के प्रकाश में अंधेरा कैसे टिक सकता है। ज्ञान का दीया आपको अभाव के आभास से भी दूर कर देता है।

आपके भीतर लालच लेशमात्र नहीं रहता। आप भरपूर महसूस करते हैं। औरों को देखकर ईष्‍या नहीं होती बल्कि सर्वकल्‍याण के भाव से भरे होते हैं।

जब ऐसा हो तो समझ लें कि आपके पास सबसे बड़ा धन है। आप सबसे अमीर हैं। आपकी बराबरी बड़े बड़े धनवान यानी रुपये पैसे के धनी भी नहीं कर सकते।

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